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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: अवत्सारः काश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

अ꣣यं꣡ विश्वा꣢꣯नि तिष्ठति पुना꣣नो꣡ भुव꣢꣯नो꣣प꣡रि꣢ । सो꣡मो꣢ दे꣣वो꣡ न सूर्यः꣢꣯ ॥७५७॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अयं विश्वानि तिष्ठति पुनानो भुवनोपरि । सोमो देवो न सूर्यः ॥७५७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣣य꣢म् । वि꣡श्वा꣢꣯नि । ति꣣ष्ठति । पुनानः꣢ । भु꣡व꣢꣯ना । उ꣣प꣡रि꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । दे꣡वः꣢ । न । सू꣡र्यः꣢꣯ ॥७५७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 757 | (कौथोम) 1 » 2 » 16 » 3 | (रानायाणीय) 2 » 5 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(अयम्) यह (सोमः) सौम्य, जगत्स्रष्टा परमात्मा (देवः) प्रकाशक (सूर्यः न) सूर्य के समान (विश्वानि) सब हृदयों को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (भुवना उपरि) सब भुवनों के ऊपर, उनका अधिष्ठाता बनकर (तिष्ठति) विराजमान है ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

जैसे सूर्य सौरमण्डल का अधिष्ठाता है, वैसे ही परमात्मा विश्वब्रह्माण्ड का अधिष्ठाता है ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनस्तमेव विषयं वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

(अयम्) एषः (सोमः) सौम्यो जगत्स्रष्टा परमात्मा (देवः) प्रकाशकः (सूर्यः न) आदित्यः इव (विश्वानि) सर्वाणि हृदयानि (पुनानः) पावयन् (भुवना उपरि) सर्वेषां भुवनानाम् उपरि तेषामधिष्ठाता सन् (तिष्ठति) विराजते ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

भावार्थभाषाः -

यथा सूर्यः सौरमण्डलस्याधिष्ठाता तथा परमात्मा विश्वब्रह्माण्डस्याधिष्ठाता विद्यते ॥३॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।५४।३।